महिला एथलीट की पीड़ा- बेहतर प्रदर्शन के बाद भी नहीं बढ़ती भागीदारी

देश की आधी आबादी हर क्षेत्र में देश का नाम रोशन कर रही है. चाहे राजनीति हो या फिर व्यापार हो महिला शक्ति ने अपना लोहा हर जगह मनाया है. लेकिन अगर खेलों की बात की जाए तो पिछले दो दशक से महिला खिलाड़ियों ने देश का सिर गर्व से ऊंचा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. लेकिन इसके बाद भी महिला खिलाड़ियों से भेदभाव की कहानी हर जगह नजर आ जाती है. ये मात्र कहने की बात नहीं है इसको साबित करते हुए आंकड़े ये सच्चाई बयां करते हैं. सिंपली स्पोर्ट के ” ब्रेकिंग बैरियर फॉर वीमेन इन स्पोर्ट्स ” पायलट सर्वे में ये बात निकलकर सामने आई है.

4 राज्यों में 213 महिला खिलाड़ियों पर किया गया सर्वे

सिंपली स्पोर्ट के ” ब्रेकिंग बैरियर फॉर वीमेन इन स्पोर्ट्स ” पायलट सर्वे की अगर बात की जाए तो बिहार, हरियाणा, मणिपुर और राजस्थान में किए गए इस सर्वे में 214 महिला एथलीट खिलाड़ियों से महिलाओं के सामने आने वाली परेशानियों से सवाल पूछे गए थे. जिसमें खेल सुविधाओं तक खराब पहुंचे, खेलने के लिए सही उपकरण नहीं होना, अच्छी सुविधाओं के लिए दूर तक जाने की समस्या, महिला एथलीट के लिए सुरक्षा से जुड़ी समस्या, महिला कोच की कमी होना, प्रतियोगिताओं के लिए असुरक्षित यात्रा और खेल में भेदभाव जैसे कई मुद्दे सामने आए.

1008 पुरुषों के मुकाबले 257 महिला खिलाड़ियों का खेलों में हिस्सा

रिपोर्ट्स के आधार पर अगर बात की जाए तो एथलीट में अब तक भारत के लिए 1 हजार 8 पुरुष खिलाड़ी प्रतिनिधि कर चुके हैं. तो वहीं यहां महिलाओं की संख्या महज 257 ही है. 

2002 कॉमनवेल्थ गेम्स में महिला खिलाड़ियों ने रच दिया था इतिहास

2002 कॉमनवेल्थ गेम्स में जहां महिला हॉकी टीम की ऐतिहासिक जीत के साथ गोल्ड जीतने की गूंज आज तक सुनाई देती है तो वहीं इन्हीं गेम्स में लॉन्ग जंप में अंजु बॉबी जॉर्ज ने वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ ब्रांच मेडल जीता था. 2002 में आयोजित हुए  कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत ने कुल 69 मेडल अपनी झोली में डाले थे इनमें से 32 मेडल महिला खिलाड़ियों ने जीते थे. 

कोच और प्रबंधक के तौर पर महिलाओं की कमी, तो बुनियादी सुविधाओं का अभाव

अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी के निर्देशों की अगर बात की जाए तो खेलों से जुड़ी किसी भी संस्थान में महिलाओं का 30 फीसदी प्रतिनिधित्व होना जरुरी है. लेकिन भआरत में मौजूद 8 नेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन में एक भी महिला प्रतिनिधि नहीं है. इसके साथ ही महिला खिलाड़ियों के सामने प्रैक्टिस के दौरान बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी एक बड़ी चुनौती है. जिसके चलते महिलाओं की भागीदारी उस स्तर पर नहीं पहुंच पा रही है जिनकी वो हकदार हैं.

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